मिल्खा सिंह के जीवन से 5 सबक: हार मत मानो, साहस ही सब कुछ है

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मिल्खा सिंह के जीवन से 5 सबक: हार मत मानो, साहस ही सब कुछ है


8 घंटे पहले

यदि किसी में मेहनत करने का गुण है तो वह आसमान छू सकता है।

– मिल्खा सिंह

संडे मोटिवेशनल करिअर फंडा में स्वागत!

विभीषिका के दावानल से सफलता के गगन तक

क्या आप एक ऐसे व्यक्ति के इंटरनेशनल लेवल पर खेलों में सफल होने की उम्मीद कर सकते हैं, जिसका परिवार विभाजन के दौरान बेघर हो गया हो, जिसके माता-पिता और परिवार के सदस्य पार्टीशन के बाद हुई हिंसा में मारे गए हो?

जी हां, हम बात कर रहे हैं फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर भारत के सबसे प्रतिष्ठित खेल शख्सियतों में से एक ‘मिल्खा सिंह’ की। उनका जन्म 1929 में आधुनिक पाकिस्तान में हुआ था। 1947 में विभाजन के दौरान उन्हें शरणार्थी के रूप में भारत आना पड़ा।

फ्लाइंग सिख नाम कैसे मिला

1960 के ओलंपिक में 400 मीटर का फाइनल मिल्खा सिंह की सबसे यादगार दौड़ थी। चार धावकों ने मौजूदा विश्व रिकॉर्ड को तोडा था। संयुक्त राज्य अमेरिका के ओटिस डेविस, जर्मन कार्ल कॉफमैन से एक सेकंड के सौवें हिस्से से पहले स्थान पर रहे। और यह सेकंड का सौवां हिस्सा था जिसने मिल्खा सिंह को कांस्य पदक खोने पर मजबूर किया। पाकिस्तान में प्रसिद्ध धावक अब्दुल खालिक पर अपनी जीत के बाद, जनरल अयूब खान ने उन्हें ‘द फ्लाइंग सिख’ उपनाम से नवाजा था।

फ्लाइंग सिख के जीवन से 5 बड़े सबक

इनका जीवन इतना प्रेरणास्पद है कि हमारी प्रोफेशनल और स्टूडेंट लाइफ में आज भी हमें ऊर्जा देता है। जानिए कैसे

1) सफल होने के लिए संरक्षक/गाइड की आवश्यकता: जीवन में सफल होने के लिए सही समय पर सही मेंटर, गाइड या संरक्षक का मिलना बहुत जरूरी है, यह बात मिल्खा सिंह के जीवन से बहुत अच्छी तरह समझ आती है।

A) पार्टीशन में अनाथ और बेघर हो जाने के बाद मिल्खा सिंह ने अपना कुछ समय दिल्ली में अपनी एक बहन के यहां बिताया, किन्तु जीवन ने उन्हें इस कगार पर ला खड़ा किया की वे डकैत बनने के बारे में सोचने लगे थे।

B) तभी उनके एक भाई ने उन्हें भारतीय सेना ज्वाइन करने की सलाह दी, जहां से उनके जीवन में पॉजिटिव बदलाव आने शुरू हुए।

C) एथलेटिक्स से उनका परिचय भी भारतीय सेना में काम करते हुए हुआ और फिर उनके कोच रणबीर सिंह के रोल को कैसे भुलाया जा सकता है।

2) हार मत मानो: मिल्खा सिंह का जीवन हमको अपने सपनों के लिए कभी हार न मानने की सीख देता है।

A) भारतीय सेना में सिलेक्ट होने के पहले उन्हें तीन बार सेना में भर्ती करने से खारिज कर दिया गया था लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और चौथी बार आवेदन किया, और उन्हें स्वीकार कर लिया गया।

B) शायद उनकी जगह और कोई व्यक्ति होता तो और कोई रास्ता चुन लेता। असफलता आपको जीवन का बहुमूल्य पाठ सिखाती है।

C) आपको हमेशा वह नहीं मिलता जो आप चाहते हैं, सही होना सफलता की गारंटी नहीं देता।

D) असफलता को नकारात्मक मानने के बजाय रीसेट करने और नए सिरे से शुरुआत करने के अवसर के रूप में देखें।

1958 की इस तस्वीर में मिल्खा सिंह ने 47 सेकेंड में 400 मीटर दौड़ कर टोक्यो एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता था।

3) साहस ही सब कुछ है: हम सभी अपने जीवन में किसी न किसी मोड़ पर त्रासदियों का अनुभव करते हैं। मिल्खा सिंह के मामले में यह उनके जीवन में बहुत जल्दी हुआ। एक किशोर के रूप में, उन्होंने भारत के विभाजन के बाद हुए हिंसक दंगों में अपने माता-पिता को खो दिया। यह उनके लिए काफी दर्दनाक अनुभव था, लेकिन वह इससे उबरकर भारत के सबसे प्रिय एथलीटों में से एक बन गए।

4) कड़ी मेहनत, सफलता की कुंजी: अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आपको अपनी सारी ऊर्जा उन्हें समर्पित करनी चाहिए। जहां तक मिल्खा सिंह का सवाल है, उन्होंने किया। अत्यधिक दबाव में, इस आदमी ने हर दिन पांच घंटे सर्वश्रेष्ठ धावक बनने के लिए प्रशिक्षण कीया। कड़े प्रशिक्षण के दौरान उन्हें कभी-कभी पहाड़ियों पर दौड़ते हुए, यमुना की रेत और यहां तक कि मीटर गेज ट्रेन की गति के खिलाफ दौड़ते हुए थकावट के कारण उल्टी हो जाती थी और वे गिर जाते थे।

5) छोटी उपलब्धियों से संतुष्ट न हों: मिल्खा सिंह ने कॉमनवेल्थ गेम्स हों या एशियन गेम्स, सभी जगह मेडल जीते – फिर भी वे हर दिन खुद को आगे बढ़ाते रहे। यह हर विजेता के लिए एक अच्छा विचार है कि वह उससे सीखे और जीत की लय पर रुके नहीं। खुद मिल्खा सिंह के शब्दों में ‘मेरे लिए ट्रैक एक खुली किताब की तरह था, जिसमें मैं जीवन का अर्थ और उद्देश्य पढ़ सकता था’।

एक गरिमामय और सफल जीवन

1964 के बाद मिल्खा सिंह ने खेल से संन्यास ले लिया और 2021 में कोविड-19 महामारी से 90 वर्ष से अधिक की उम्र में उनका देहांत हो गया। 1958 में, वे कार्डिफ में राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय पुरुष बने। इसके अतिरिक्त, उन्होंने 1958 और 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीते। बाद में, उन्हें पंजाब शिक्षा मंत्रालय के लिए खेल निदेशक नियुक्त किया गया। उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया गया। 2013 में, मिल्खा की बेटी ने उनकी आत्मकथा “द रेस ऑफ माई लाइफ” प्रकाशित की और इसी साल उनके जीवन पर ‘भाग मिल्खा भाग’ नामक फिल्म बनाई गई। फिल्म और आत्मकथा के अलावा, मिल्खा की चंडीगढ़ में मैडम तुसाद द्वारा निर्मित मोम की मूर्ति भी है।

तो आज का संडे मोटिवेशनल करिअर फंडा यह है कि फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह की उड़ान की बुनियाद को समझें, और नेगेटिव परिस्थिति में भी पॉजिटिव एटिट्यूड कभी न छोड़ें।

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