एक घंटा पहलेलेखक: उमेश कुमार उपाध्याय
काजोल, विशाल जेठवा, आमिर खान, राजीव खंडेलवाल, आहना कुमरा स्टारर फिल्म सलाम वेंकी रिलीज हो चुकी है। इस फिल्म का निर्देशन रेवती ने किया है। वहीं इसके प्रोड्यूसर सूरज सिंह, श्रद्धा अग्रवाल, वर्षा कुकरेजा हैं। ये फिल्म ड्यूकेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के मरीज की कहानी है जो मां से इच्छा मृत्यु मांगता है।
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कहानी- फिल्म ‘सलाम वेंकी’ एक ऐसे लड़के की कहानी है, जो ड्यूकेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (डीएमडी) नामक दुर्लभ बीमारी से जूझ रहा है। इस बीमारी में मरीज का एक-एक अंग धीरे-धीरे काम करना बंद कर देता है। ऐसे में मरीज अधिकतम 14 साल तक जीवित रहता है, जबकि वेंकी अपनी सकारात्मक सोच के साथ 25 वर्षों तक जीवित रहा। फिल्म में वेंकी का रोल विशाल जेठवा और मां सुजाता का रोल काजोल ने निभाया है। यह मां-बेटे की इमोशनल स्टोरी पर फिल्म है। वेंकी जीवन के आखिरी सालो में मां से इच्छा-मृत्यु और अंगदान करने की मांग करता है। सकारात्मक सोच का वेंकी अपनी मां पर और बोझ बनकर नहीं रहना चाहता। वहीं तकलीफ से छुटकारा पाने के साथ अंगदान करके कुछ लोगों को जीवन दान देना चाहता है। पहले तो बेटे की इस मांग को मां सुजाता सिरे से नकार देती है, जिससे मां-बेटे के बीच नोंकझोंक भी होती है। लेकिन समय के साथ मां की अंतर्रात्मा बेटे की इच्छा मृत्यु को स्वीकृति दे देती है। कहानी में पेंचीदा मोड़ तब आता है, जब बेटे की इच्छा-मृत्यु के लिए मां हॉस्पिटल से लेकर कानून का दरवाजा खटखटाती है। फिर राजनीति से लेकर कोर्ट-कचहरी और मीडिया इन्वॉल्व होता है। इसके आगे की कहानी का मजा पढ़ने से ज्यादा थिएटर में फिल्म देखने पर आएगा।
एक्टिंग- यहां बात एक्टिंग की करें, तब विशाल जेठवा की यह अब तक की सबसे उम्दा परफॉर्मेंस है। उनके ज्यादातर सीन हॉस्पिटल के हैं, सो अक्सर क्लोजअप में ही दिखाई दिए हैं। ऐसे में भी उन्होंने कैरेक्टर की जिंदादिली, इमोशन और दर्द को बरकरार रखा है। मां के रोल को काजोल ने बड़े बेहतरीन ढंग से जीवंत किया है। काजोल न सिर्फ मां के भाव को जबर्दस्त तरीके से पकड़कर कहानी में आगे बढ़ी हैं, बल्कि खुद अपनी अंतरात्मा की बातों को बड़े सरल ढंग से प्रस्तुत करती नजर आती हैं। यहां बताना होगा कि फिल्मों में अंतरात्मा का सीन आता है, तब अक्सर कैरेक्टर की परछाई दिखाई जाती है। लेकिन इसमें काजोल की अंतरात्मा की बात सुनने और जवाब देने के लिए आमिर खान बगल में बैठे नजर आते हैं। यह अलग और अनूठा तरीका दिखा। खैर, अंतरात्मा का रोल आमिर खान ने बखूबी निभाया है। सह-कलाकारों में रिपोर्टर बनीं आहना कुमरा अपने किरदार में खूब जंचती हैं तो अनंत महादेवन गुरु और जज की भूमिका में प्रकाश राज अच्छे लगते हैं। स्क्रीन स्पेस कम होने के बावजूद वेंकी की दोस्त नंदिनी की भूमिका में अनीता पड्डा ने ब्लाइंड की भूमिका में जान डाल दी है।
हर फिल्म में अच्छा-बुरा पहलू होता है, सो इसमें भी है। इसमें सबसे बड़ी सीख यह मिलती है कि जीवन लंबा नहीं, बड़ा होना चाहिए। डायरेक्टर रेवती ने हर सीन को बड़ी संजीदगी के साथ पर्दे पर उतारा है। कहानी को आगे बढ़ाने में ‘यूं तेरे हुए हम…’ आदि गानों का अहम हाथ है। फिल्म में सबसे ज्यादा जो बात अखरती है, वह ये कि फिल्म का पहला भाग बहुत स्लो दिखाया गया है। वेंकी अपनी सकारात्मक सोच के चलते 14 वर्ष की जिंदगी को 25 वर्षों तक जीता है, जिसे कुछ संवादों तक ही सीमित रख दिया गया है। फिल्म को सकारात्मक कम और टेंशन से भरपूर ज्यादा दिखाया गया है। कहानी एकदम सीधे-सपाट तरीके से कही गई है। दूसरे भाग में थोड़ा टि्वस्ट एंड टर्न आता है। आमिर खान का कैरेक्टर कभी पिता तो कभी यमराज होने का एहसास दिलाता है, जबकि वह अंतरात्मा है। इस कंफ्यूजन को निर्देशन के स्तर पर क्लियर किया जा सकता था। बहरहाल, कुल मिलाकर इस फिल्म को पांच में से तीन स्टार दिया जा सकता है।