ट्रेनों में कैसे शुरू हुई टॉयलेट की सुविधा?
भारतीय रेलवे के इतिहास को देखें तो वर्ष 1909 से पहले ट्रेनों में शौचालय (Indian Railways Toilet Facility) की सुविधा नहीं होती थी. उसी दौरान ओखिल चंद्र सेन नाम के एक यात्री ने ट्रेन में सफर किया. रेल में शौचालय न होने से उसे लंबी दूरी के सफर में परेशानियों का सामना करना पड़ा. इसके बाद उस यात्री ने 2 जुलाई 1909 को पश्चिम बंगाल के साहिबगंज मंडल कार्यालय को एक पत्र लिखा. इस पत्र में उन्होंने अपनी परेशानी बताते हुए ट्रेनों में टॉयलेट स्थापित करने का अनुरोध किया.
इस मांग पर अंग्रेजों ने लिया फैसला
चूंकि उस वक्त भारत अंग्रेजों के अधीन था. लिहाजा रेलवे (Indian Railways Toilet Facility) को चलाने बड़े अफसर भी अंग्रेज ही थे लेकिन उन्हें यह मांग उचित लगी. विचार-विमर्श के बाद उन्होंने ट्रेनों में शौचालय बनाने का फैसला ले लिया. इसके साथ ही नए डिजाइन में रेलवे के डिब्बे बनाए जाने लगे, जिसमें टॉयलेट केबिन के लिए खास जगह छोड़ी जाती थी. तब से यह सिलसिला आज तक चला आ रहा है. अब तो ट्रेनों में इंग्लिश स्टाइल वाले कमोड भी लगाए जाते हैं, जिससे बुजुर्ग और दिव्यांग भी उन्हें आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं.
ट्रेन में लगी होती है खास तरह की टंकी
इन टॉयलेट केबिन (Indian Railways Toilet Facility) के ऊपर खास तरह की पानी की टंकी फिट होती है, जिसमें सभी बड़े स्टेशनों पर पानी भरा जाता है. साथ ही ट्रेन का सफर खत्म होने पर ढंग से उसकी सफाई होती है. अब ट्रेनों की सीढ़ियां भी दिव्यांग फ्रेंडली बनाई जा रही हैं, जिससे ट्रेनों में चढ़ने और उतरने में लोगों को खास दिक्कत न हो. साथ ही लोगों की सुरक्षा के लिए ट्रेनों में सीसीटीवी कैमरे लगाने और उन्हें वाई फाई से जोड़ने का काम भी चल रहा है.
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