किसी खास रूट पर भेजने के लिए होता है इस्तेमाल
असल में जब ट्रेन को सीधे एक रूट पर जाना होता है तो वह पटरियों (Train Track Shifting Process) पर सीधी भागती रहती है. लेकिन जब ट्रेन को किसी खास रूट पर जाने के लिए अपनी दिशा बदलनी होती है तो उसे किसी जंक्शन या स्टेशन से गुजारा जाता है. वहां पर 2 से ज्यादा पटरियों का जाल बिछा होता है. वे पटरी लॉकिंग सिस्टम पर काम करती हैं. मेन पटरी के पास एक ओर पटरी बिछी होती है. जिसका अगला हिस्सा नुकीला होता है. उस जगह पर मेन पटरी थोड़ी घूमी हुई होती है.
इस तरीके से बदला जाता है ट्रैक
रेलवे अधिकारियों के मुताबिक जब पीछे से आ रही ट्रेन (Train Track Shifting Process) को किसी खास दिशा की ओर मूव करके आगे भेजना होता है तो सपोर्ट वाली नुकीली पटरी को एडजस्ट करके मेन पटरी से चिपका दिया जाता है. इसके बाद पीछे से आ रही ट्रेन के पहिये डायवर्ट होकर सपोर्ट वाली पटरी पर पहुंच जाते हैं, जिससे ट्रेन की दिशा बदल जाती है और वह अपनी मंजिल की ओर दौड़ने लगती है. इस काम को ट्रैक शिफ्टिंग भी कहा जाता है.
ट्रेन के ड्राइवर का नहीं होता कोई हाथ
दिनभर में सैकड़ों ट्रेनों पटरियों पर दौड़ती हैं, इसलिए ट्रैक शिफ्टिंग (Train Track Shifting Process) का ये काम दिनभर चलता रहता है. जब वे ट्रेनें गुजर जाती हैं तो सपोर्ट पटरी को फिर से मेन पटरी से अलग कर दिया जाता है और ट्रेन सीधी लाइन में आगे गुजरने लगती हैं. दिलचस्प बात ये है कि ट्रेन की दिशा बदलने की इस प्रक्रिया में ड्राइवर का कोई हाथ नहीं होता. उसके पास इस तरह का कोई स्टेयरिंग या उपकरण नहीं होता कि वह अपनी मर्जी से ट्रेन को दूसरी दिशा में ले जा सके.
फिर कौन करता है पटरियों की शिफ्टिंग?
अब सवाल आता है कि जब ड्राइवर के पास ट्रेन की दिशा बदलने (Train Track Shifting Process) का कोई स्टेयरिंग नहीं होता है तो वह अपने आप दूसरी पटरी पर कैसे चली जाती है. क्या यह काम कोई इंसान करता है या फिर यह ऑटोमेटिक होता है. असल में यह काम पहले एक रेल कर्मचारी करता था. वह रेलवे स्टेशन में बैठकर आने-जाने वाली ट्रेनों के मूवमेंट पर नजर रखता था. साथ ही उन्हें खास दिशा में भेजने के लिए स्टेशन रूम के जरिए ट्रैक के लॉक को शिफ्ट करने का काम करता था.
ट्रेनों में लगा होता है जीपीएस सिस्टम
अब यह सारा काम मशीन के जरिए होने लगा है. ट्रेनों में जीपीएस लगा होता है, जिसे स्टेशनों में मौजूद मशीन को रेल के आने का पता चल जाता है. इसके साथ ही वह ऑटोमेटिक तरीके से सिग्नल और रूट के हिसाब से पटरियों को ऑटोमेटिक तरीके से शिफ्ट (Train Track Shifting Process) कर देती है. ट्रेन के गुजरने के बाद उस ट्रैक को दोबारा से पुराने रूप में एडजस्ट कर दिया जाता है.